आर्य और काली छड़ी का रहस्य-27
अध्याय-9
रहस्यमई किला
भाग-2
★★★
आर्य उस टूटे हुए हिस्से से आगे निकलकर आगे आ गया। आगे आ जाने के बाद वह सामने खुली जगह की ओर जा रहा था। जगह देखने में किसी पुराने सूखे तालाब की तरह लग रही थी जिसमें काफी सारी पथरीली चटाने पड़ी थी।
आर्य खुद से बोलो “यह इस किले का जल स्त्रोत रहा होगा जहां पानी नहीं है। लेकिन अगर कभी यहां पानी था तो इस वक्त भी उसे कहीं ना कहीं होना चाहिए। अगर मुझे थोड़ा सा भी पानी मिल गया तो हिना को होश आ जाएगा”
किले का यह वाला हिस्सा काफी शांत और एक अलग ही आकृति लिए था। किले की दीवारों पर हरी घास की फिसलन भरी सतह थी। आसपास कुछ मूर्तियां थी जिन पर मकड़ी के जाले काफी अरसे से लगे हुए थे। सभी मूर्तियोंं के पास अलग-अलग तरह के हथियार थे। कुछ मूर्तियों की ऊंचाई 7 से 8 मीटर तक भी थी। आर्य बेफ़िक्री से इस जगह का मुआयना कर रहा था और पानी की तलाश में लगा हुआ था। इस खुली जगह से आगे किसी भी तरह का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।
अचानक तभी आर्य को पानी के बूंद के गिरने की टपक टपक वाली आवाज सुनाई दी। आर्य ने आवाज को ध्यान से सुना तो पता चला वह किसी बड़ी तलवार वाली मूर्ति के पीछे से आ रही थी।
आर्य मूर्ति के पास गया और वहां जाकर आवाज को गौर से सुनने लगा। उसने पीछे की तरफ देखा तो उसे खाली जगह दिखाई नहीं दी। मगर मूर्ति का कुछ हिस्सा जरूर पानी से भीगा हुआ था। आर्य ने ऊपर देखा तो पता चला छत से पानी की बूंदे सीधे मूर्ति के सर के ऊपर आकर गिर रही है।
आर्य ने खुद से कहा “यह ज्यादा पानी नहीं है, लेकिन हिना को होश में लाने के लिए ज्यादा पानी चाहिए भी नहीं। मुठी भर पानी से काम चल जाना चाहिए।”
आर्य ने मूर्ति को नीचे से पकड़ा और अपनी भुजाओं के दम पर उस मूर्ति को पीछे की ओर खींचने लगा। खुद में असमान्य गुण होने के कारण होने के कारण आर्य के लिए यह काम मुश्किल नहीं था। यह दूसरी बार था जब उसे अपनी एक असामान्य क्षमता इस्तेमाल करने का मौका मिला था। इससे पहले उसने बालु को जोर से धक्का मारा था, वह भी तब जब वह जंगल में था।
मूर्ति का वजन तकरीबन 3 किवंटल से ज्यादा होगा और आर्य उसे जैसे तैसे कर खींच रहा था। इस प्रक्रिया में आर्य को एक पल भी एहसास नहीं हुआ कि वह जिस मूर्ति को खींच रहा है उसमें कुछ हलचल हो रही थी। उसकी आंखें खुल रही थी और होठ सिकुड़ रहे थे। वह जिंदा थी। मूर्ति के हाथ में एक बड़ा सा हथोड़ा था जिसका वजन तकरीबन 50 किलो के आस-पास होगा।
अचानक आर्य को महसूस हो गया की मूर्ति में कोई हलचल हो रही है, उसने जैसे ही ऊपर देखा उसे पता चला मूर्ति का जबरदस्त हथोड़ा उसकी ओर बढ़ रहा था और वह किसी भी पल उस से टकराने वाला था।
एक पल की और देरी होती तो आर्य का उसे हथौड़े के वार से बच पाना असंभव था। मगर ऐन वक्त पर आर्य ने हथौड़े को अपनी ओर आते देख लिया और पलक झपकने में लगे समय से भी कम समय में सुपर स्पीड से उस जगह से हट गया।
मूर्ति का हथोड़ा सीधे जमीन से जा टकराया और किले में एक बड़ी सी धमक की आवाज पैदा हुई।
आर्य बाल-बाल बचा था पर यह तो एक शुरुआत थी।
मूर्ति ने एक और वार आर्य पर किया, पर आर्य फिर से सुपर स्पीड से बच निकला। आर्य ने इससे पहले जब भी अपनी क्षमता का इस्तेमाल किया था तब वह उससे छोटे-मोटे काम ही किया करता था। जैसे जंगल में फूलों को तोड़ने और घर में सफाई करना। मगर अब वह लड़ाई में अपनी क्षमता को भूमिका में डाल रहा था।
जल्द ही आर्य ने अपने अंदर एक आत्मविश्वास को जगाया और मूर्ति के सामने हिम्मत कर खड़ा हो गया। दो बार मुर्ति से बचने के कारण उसे यह बात समझ में आ गई थी कि उसकी क्षमता उसके काफी काम आने वाली है। आर्य और मूर्ति आमने सामने थे। मूर्ति ताकतवर और मजबूत थी तो आर्य के पास अपनी अलग क्षमताए थी।
मूर्ति ने अपने हाथ में पकड़े हथोड़े जैसे दिखने वाले हथियार से आर्य पर वार किया जिससे आर्य को बचने में ज्यादा मुश्किल नहीं आई। पर सिर्फ बचाव ही काफी नहीं था आक्रमण भी जरूरी था। इस बात को समझते हुए आर्य ने पास पड़ी एक दूसरी मूर्ति के हाथ से तलवार उठाई और उसे घुमाते हुए मूर्ति के पेर पर दे मारा।
तलवार आर्य की ऊंचाई से लगभग दोगुनी बड़ी थी। इस मार ने मूर्ति का एक पैर तोड़ दिया।
मूर्ति का पैर टूट जाने की वजह से वह मूर्ति लगड़ाते हुए आर्य की ओर बढ़ने लगी। मूर्ति के हमला करने की गति कम हो चुकी थी। आर्य ने वापस तेजी दिखाते हुए उसकी दूसरी टांग पर हमला किया जिससे उसकी दूसरी टांग भी टूट गई। दोनों टांगों के टूटने के बाद मूर्ति जमीन पर नीचे गिर गई।
मूर्ति के जमीन पर नीचे गिरते ही आर्य ने तलवार उसके धड़ पर मार दी। मूर्ति का धड़ अलग होकर फर्श पर लूढकता गया। मूर्ति में होने वाली हलचल भी बंद हो गई थी।
आर्य ने राहत की सांस ली और वापिस उस जगह की ओर देखा जहां वह मूर्ति पहले खड़ी थी। वहां अब मूर्ति के पीछे एक छिपा हुआ रास्ता भी दिखाई दे रहा था, और पानी की बूंदे भी टपक टपक नीचे फर्श पर गिरने लगी थी।
आर्य ने बड़ी तलवार को वही फेंक दिया और नीचे गिरने वाली पानी की बूंदों के बीच अपना हाथ कर दिया। पानी की बूंदे उसके हाथ में गिरने लगी। तकरीबन 5 मिनट तक वहीं खड़े रहने के बाद आर्य के हाथ में प्रयाप्त पानी जमा हो गया था।
आर्य ने पानी लिया और हिना और आयुध की तरफ चल पड़ा।
★★★
जल्द ही आर्य आयुध और हिना के पास पहुंचा। हिना के पास पहुंचते ही उसने पानी की बूंदे उसके चेहरे पर गिरा दी। पानी की बूंदे चेहरे पर गिराने की वजह से हिना को होश आया।
हिना होश में आते ही बोली “मुझे क्या हुआ था और हम कहां हैं?”
आयुध ने उसे जवाब दिया “दरअसल हम तीनों ऊपर से नीचे गिर गए थे। नीचे गिरते वक्त तुम्हारे सर पर कुछ छोटे पत्थर टकराए और तुम बेहोश हो गई। हम इस वक्त वही है, यानी उस जगह के नीचे जहां से गिरे थे।”
“ओह... गोड” हिना अपने सर के बालों को नोचते हुए बोली। इसके बाद उसने दोनों से पूछा “मुझे यहां बहोश हुए लगभग कितना समय हो गया है?”
आयुध ने जवाब दिया “तकरीबन 20 मिनट।”
हिना यह सुनकर खड़ी हुई और अपने ऊपर देखने लगी। उसने ऊपर उस जगह को देखा जहां से वह नीचे गिरी थी। “मेरे ख्याल से हम अभी भी मौत के गलियारे के अंदर हैं। हमें यहां से बाहर निकलना होगा।”
आर्य बोला “तुम्हारे कहने का मतलब हमें आगे बढ़ना चाहिए...।”
“हां” हिना बोली “हमें आगे ही बढ़ना चाहिए। यहां इस गलियारे में ज्यादा देर तक रुकना हमारे लिए ठीक नहीं होगा। पता नहीं यहां और कितने सारे ऐसे ही जाल बिछे होंगे।”
आयुध सामने टूटे हुए दरवाजे की तरफ़ देखने लगा। उसे दरवाजे से आगे किसी तरह का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। उसने हिना से कहा “लेकिन यहां से तो आगे बढ़ने को कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा.... हम आखिर आगे जाएंगे कहां?”
“उसकी फिकर तुम दोनों मत करो...” आर्य दोनों को बोला “मैंने आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढ लिया है। मैं जब हिना के लिए पानी लेने गया था तब वहीं मुझे रास्ता मिला। वह रास्ता किसी बड़ी सी मूर्ति के पीछे था जिसके ऊपर पानी की बूंदे गिर रही थी। हमें उसी रास्ते से आगे बढ़ना चाहिए।”
हिना ने अपने चेहरे पर खुशी दिखाई “यह तो तुमने बहुत अच्छा किया आर्य।” वह आर्य से बोली “तुमने आगे जाने का रास्ता ढूंढ लिया। चलो अब जल्दी से हमें वहां ले चलो जहां तुमने रास्ता ढूंढा है।”
तीनों ही उस रास्ते की तरफ चल पड़े जिसकी तलाश आर्य ने की थी। उन्होंने सबसे पहले टूटे हुए दरवाजे को पार किया जो ज्यादा बड़ा नहीं था। इसके बाद वह लोग खाली जगह में आए जहां सूखा तालाब बना हुआ था। इसी जगह की दीवारों पर हरे रंग की घास की परत चढ़ी हुई थी। वहां आर्य ने दरवाजे की तरफ उंगली करते हुए कहा “वह रहा दरवाजा।”
आयुध और हिना दोनों का ध्यान दरवाजे की तरफ चला गया। हिना ने वहां टूटी हुई मूर्ति भी देखी। टूटी हुई मूर्ति को देख कर हिना बोली “यह इसकी हालत इतनी अजीब कैसे हैं?”
आर्य ने मूर्ति की तरफ देखते हुए कहा “इसकी यह हालत मेरी वजह से हुई है। यह मूर्ति जिंदा थी और पानी लेने से पहले इसने मुझ पर हमला कर दिया था। बचाव के लिए मुझे इससे लड़ना पड़ा और लड़ने के बाद इसे खत्म करना पड़ा।”
यह सुनकर आयुध ने आर्य के कंधे को थपथपाया “वाह... क्या बात है। हमारा हीरो भी किसी से कम नहीं।”
आर्य ने इसे अपनी तारीफ के तौर पर लिया। वही हिना ने भी आंखों से आर्य की तारीफ की। हालांकि यहां इस बात का जिक्र नहीं हुआ कि आर्य ने यह कैसे किया, इस वजह से आर्य की असमान्य क्षमता अभी भी सभी के लिए अनजान थी।
सब उस रास्ते की तरफ बढ़ने लगे जो मूर्ति के पीछे बना हुआ था।
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